UP 69,000 Teacher Recruitment: सात साल से न्याय की राह पर ठहरे सपने: 69 हजार भर्ती के अभ्यर्थियों ने कहा-अब या तो सुनवाई, या विधान भवन का घेराव

UP Teacher Recruitment: लखनऊ में 69 हजार सहायक शिक्षक भर्ती में आरक्षण से प्रभावित अभ्यर्थियों ने 28 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई से पहले सरकार को अल्टीमेटम दिया है। शालीमार गार्डन में हुई बैठक में तय हुआ कि अगर सरकार याची लाभ का प्रस्ताव पेश नहीं करती, तो अभ्यर्थी विधान भवन का शांतिपूर्ण घेराव करेंगे।

UP 69,000 Teacher Recruitment: सात साल से न्याय की राह पर ठहरे सपने: 69 हजार भर्ती के अभ्यर्थियों ने कहा-अब या तो सुनवाई, या विधान भवन का घेराव

UP 69K Teacher Recruitment Row: परिषदीय विद्यालयों में 69 हजार सहायक शिक्षक भर्ती में आरक्षण को लेकर चल रहे विवाद के बीच आरक्षण पीड़ित अभ्यर्थियों का सब्र अब टूटता नजर आ रहा है। रविवार को राजधानी लखनऊ के शालीमार गार्डन बाग में इन अभ्यर्थियों की एक बड़ी बैठक आयोजित हुई, जिसमें प्रदेश के दर्जनों जिलों से आए अभ्यर्थियों ने हिस्सा लिया। बैठक में यह सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि यदि सरकार ने 28 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई के दौरान याचियों के पक्ष में लाभ प्रस्ताव प्रस्तुत नहीं किया, तो अभ्यर्थी संवैधानिक दायरे में रहकर विधान भवन का घेराव करेंगे।

14 महीने से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है मामला

अभ्यर्थियों का कहना है कि आरक्षण से जुड़ा यह मामला पिछले 14 महीने से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। इस दौरान 23 से अधिक बार तारीखें पड़ चुकी हैं, लेकिन सरकार की ओर से कोई ठोस जवाब या पक्ष अदालत में प्रस्तुत नहीं किया गया। अभ्यर्थियों का आरोप है कि सरकार जानबूझकर इस मामले को टाल रही है, जिससे हजारों युवाओं का भविष्य अधर में लटका हुआ है।

कानपुर से आए अभ्यर्थी नितिन पाल ने कहा कि हम पिछले सात वर्षों से न्याय की उम्मीद में लड़ रहे हैं। हर त्यौहार, हर पर्व हमारे लिए बोझ बन गया है। परिवार पूछता है कब नौकरी मिलेगी, लेकिन सरकार चुप है। हमने संविधान और कानून के तहत लड़ाई लड़ी, पर अब धैर्य की सीमा टूट रही है।

बीएड अभ्यर्थियों का कहना-यह है आखिरी मौका

बैठक में मऊ जिले से आए अभ्यर्थी बीपी डिसूजा ने कहा कि 69 हजार शिक्षक भर्ती बीएड अभ्यर्थियों के लिए अंतिम अवसर थी। हमने 2020 में याची बनकर न्याय की उम्मीद जगाई थी। अदालत ने सुनवाई शुरू की, लेकिन सरकार ने न तो कोई स्पष्ट जवाब दिया और न ही न्याय दिलाने की कोशिश की। अगर इस बार भी सरकार अदालत में गंभीरता नहीं दिखाती है, तो हम शांत नहीं बैठेंगे। उन्होंने कहा कि बीएड अभ्यर्थियों की आयु सीमा भी धीरे-धीरे समाप्त हो रही है। अगर इस भर्ती में न्याय नहीं मिला, तो वे स्थायी रूप से सरकारी सेवा से बाहर हो जाएंगे।

बैठक में कई जिलों के अभ्यर्थियों की भागीदारी

शालीमार गार्डन में हुई इस बैठक में बाराबंकी, कानपुर, सिद्धार्थनगर, गोरखपुर, आजमगढ़, जौनपुर, सीतापुर और भदोही जिलों से आए अभ्यर्थियों ने भाग लिया। सभी ने एकजुट होकर यह निर्णय लिया कि अब इस लड़ाई को राजधानी स्तर पर मजबूत आवाज के रूप में उठाया जाएगा। अभ्यर्थियों ने कहा कि वे किसी राजनीतिक दल से जुड़े नहीं हैं, बल्कि यह आंदोलन पूरी तरह शैक्षिक न्याय और समान अवसर के लिए है।

क्या है 69 हजार शिक्षक भर्ती विवाद

प्रदेश में वर्ष 2019 में 69,000 सहायक अध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई थी। लिखित परीक्षा का आयोजन 6 जनवरी 2019 को हुआ था और परिणाम मई 2020 में जारी किए गए। इस भर्ती में आरक्षण प्रणाली को लेकर गंभीर विवाद खड़ा हुआ। अभ्यर्थियों ने आरोप लगाया कि आरक्षण का गलत निर्धारण कर सामान्य वर्ग के सीटों में कटौती और अनुचित वरीयता दी गई। कई अभ्यर्थियों ने इस मामले को हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचाया। अदालत ने कुछ याचिकाओं को स्वीकार कर सुनवाई शुरू की थी। परंतु अब तक राज्य सरकार की ओर से ठोस उत्तर या स्पष्टीकरण पेश नहीं किया गया, जिससे मामला अधर में है।

सरकार की चुप्पी पर उठे सवाल

अभ्यर्थियों ने बैठक में सरकार की निष्क्रियता पर गहरा आक्रोश जताया। उनका कहना है कि यदि सरकार वास्तव में पारदर्शिता और न्याय चाहती है, तो उसे सुप्रीम कोर्ट में जाकर अपना पक्ष स्पष्ट रखना चाहिए ताकि भर्ती प्रक्रिया को निष्पक्ष रूप से पूरा किया जा सके। एक अभ्यर्थी ने कहा कि  हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि जो भी पात्र हैं, उन्हें उनका अधिकार मिले। सरकार चाहे तो एक आदेश से याची लाभ का प्रस्ताव रख सकती है, लेकिन वह न जाने क्यों चुप्पी साधे हुए है।

अभ्यर्थियों ने दी चेतावनी

बैठक में सभी अभ्यर्थियों ने यह चेतावनी दी कि यदि 28 अक्टूबर को होने वाली सुनवाई में सरकार याची लाभ प्रस्ताव पेश नहीं करती या न्याय प्रक्रिया में देरी करती है, तो वे संवैधानिक दायरे में रहकर विधान भवन का घेराव करेंगे। उनका कहना है कि वे किसी हिंसक आंदोलन का हिस्सा नहीं बनना चाहते, बल्कि शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से अपनी आवाज बुलंद करेंगे। अभ्यर्थी आलोक ने कहा  हम देश के नागरिक हैं, कोई अपराधी नहीं। हम सिर्फ न्याय मांग रहे हैं। 

सात वर्षों की प्रतीक्षा में थके अभ्यर्थी

अभ्यर्थियों ने बताया कि 69 हजार भर्ती की प्रक्रिया ने उनके जीवन के सात वर्ष छीन लिए हैं। अभ्यर्थी आयु सीमा पार कर चुके हैं, कुछ के परिवार आर्थिक तंगी झेल रहे हैं, और कई मानसिक तनाव में हैं। कानपुर के नितिन पाल ने कहा कि हमने बीएड करके शिक्षक बनने का सपना देखा था। अब उम्र निकल रही है, लेकिन नौकरी नहीं मिली। कोर्ट से हर बार नई तारीख मिलती है, लेकिन न्याय नहीं।”

संगठनात्मक रणनीति पर भी चर्चा

बैठक में आगामी रणनीति पर भी चर्चा हुई। तय किया गया कि एक राज्यव्यापी संयोजन समिति बनाई जाएगी जो आगे की कानूनी और आंदोलनात्मक रणनीति तय करेगी। समिति सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ताओं से संपर्क में रहेगी और यदि जरूरत पड़ी तो दिल्ली में भी शांतिपूर्ण धरना दिया जाएगा।

सरकारी स्रोतों का कहना

सरकारी सूत्रों ने बताया कि मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन होने के कारण सरकार किसी भी जल्दबाजी में निर्णय नहीं लेना चाहती। उनका कहना है कि राज्य सरकार अदालत के निर्देशों के अनुसार ही आगे की कार्रवाई करेगी। हालांकि,अभ्यर्थियों का कहना है कि “सरकार की यह सावधानी दरअसल टालमटोल की नीति है।

अभ्यर्थियों का भावनात्मक पक्ष

बैठक में कई अभ्यर्थियों ने अपने संघर्ष की व्यक्तिगत कहानियाँ साझा कीं। सीतापुर की एक महिला अभ्यर्थी कुसुम ने कहा कि  मेरे पिता की मृत्यु हो चुकी है। मैं ही घर की जिम्मेदारी उठा रही हूँ। भर्ती लटकने से हम जैसे हजारों युवाओं का भविष्य अंधेरे में है। वहीं गोरखपुर से आए अभ्यर्थी  विजय ने कहा कि हम सरकार से कुछ नहीं छीनना चाहते, बस वही अधिकार चाहते हैं जो संविधान ने हमें दिया है।

न्याय की प्रतीक्षा में अधर में भविष्य

69 हजार सहायक शिक्षक भर्ती का यह विवाद अब सिर्फ कानूनी मसला नहीं, बल्कि हजारों युवाओं की जिंदगी और सपनों का प्रश्न बन चुका है। लखनऊ में हुई बैठक में एक बार फिर यह साफ हो गया कि अभ्यर्थी अब लंबी चुप्पी तोड़ने को तैयार हैं। अगर 28 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में कोई ठोस निर्णय नहीं हुआ और सरकार ने अपना पक्ष नहीं रखा, तो लखनऊ की सड़कों पर न्याय की आवाजें फिर गूंजेंगी। अभ्यर्थियों का कहना है कि यह लड़ाई नौकरी की नहीं, बल्कि समान अवसर और संवैधानिक न्याय की है, और जब तक उन्हें न्याय नहीं मिलता, वे पीछे नहीं हटेंगे।

Original Source - Patrika Live News

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